वचन - संस्कृत व्याकरण | vachan in sanskrit

संस्कृत व्याकरण में वचन अध्याय का बहुत महत्वूर्ण स्थान है क्योकि इसके बिना किसी भी वाक्य अथवा भाव की मात्रात्मक व्याख्या संभव नहीं है| इसलिए हम आज आपके सामने लेकर आये हैं वचन इन संस्कृत ,यानि  की संस्कृत अनुसार वचन कैसे परिभासित है | 

vachan-in-sanskrit

वचन किसे कहते हैं  

जिससे किसी पदार्थ की संख्या का बोध हो, उसे वचन कहते हैं। जी हाँ , अगर आपको किसी भी शब्द से किसी पदार्थ के सख्या का बोध हो रहा है तो वह वचन है |  

वचन प्रकार के होते हैं 

संस्कृत में तीन वचन होते हैं- एकवचन द्विवचन और बहुवचन 

प्रथमादि प्रत्येक विभक्तिः में तीन-तीन वचन होते हैं।

➠ एकवचन

जिससे एक का बोध हो,  यानि की  एक संख्या के बोध हो उसे एकवचन कहते है। 

जैसे - अश्वः - एक घोड़ा (पुल्लिंग)

बालिका– एक लड़की (स्त्रीलिंग) 

फलम्ए- एक फल (नपुंसकलिंग)

'एक' शब्द एकवचनान्त होता है। इसलिए एक घोड़ा दौड़ता है, इसका अनुवाद 'एक: अश्वः धावति' ऐसा होगा किन्तु यदि इस वाक्य में 'एक:' शब्द नहीं भी दिया जाए, तब भी 'अश्वः धावति' का अर्थ 'एक घोड़ा दौड़ता है' होगा, क्योंकि 'अश्वः' कर्ताकारक एकवचन है। 

इसी तरह 'बालिका पठति' एक लड़की पढ़ती है, 'फलं पतति' एक फल गिरता है इन वाक्यों में 'बालिका' और 'फलं' एकवचनान्त है। द्वय, युग, युग्म, युगल आदि द्विवचनबोधक तथा त्रय, त्रितय, चतुष्टय, वर्ग, समूह, गण, कुल आदि बहुत्वबोधक होने पर भी एकवचनान्त होते हैं। 

जैसे- छात्र-द्वयं पठति- दो छात्र पढ़ते हैं। बाल समूहः गृहं गच्छति- बच्चों का दल घर जाता है।

➠ द्विवचन

जिससे दो का बोध हो, अर्थात दो मात्रात्मक संख्या का बोध हो उसे द्विवचन कहते हैं। 

जैसे - अश्वौ: - दो घोड़े (पुल्लिंग) 

बालिके- दो लड़कियाँ (स्त्रीलिंग) 

फले- दो फल (नपुंसकलिंग)

ऊपर 'अश्वौ', 'बालिके' तथा 'फले' शब्द कर्ताकारक, द्विवचन के रूप में दिखाए गए है। हिन्दी व्याकरण में द्विवचन नहीं होता, इसलिए हिन्दी में द्विवचन का बोध कराने के लिए हिन्दी वाक्य में स्पष्ट रूप से 'दो' शब्द का प्रयोग किया जाता है, जैसे- ऊपर 'दो घोड़े', 'दो लड़कियाँ' जैसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं। 

केवल'घोड़े' या 'लड़कियों' कहने से द्विवचन का बोध नहीं होकर बहुवचन का बोध होगा किन्तु संस्कृत में अलग से 'दो' शब्द नहीं लगाना पड़ता है। यही अंतर है संस्कृत और हिंदी व्याकरण  में  जिससे भासात्मक अंतर का पता छाता है | 

जैसे संस्कृत व्याकरण  में वचन का महत्व है वैसे ही हिंदी व्याकरण  में वर्ण का , तो  ( पूरा पढ़ें .....)

➠ बहुवचन

जिससे दो से अधिक का बोध हो, उसे बहुवचन कहते हैं। 

जैसे- अश्वा:- कई घोड़े (पुल्लिंग) 

बालिकाः – कई लड़कियाँ (स्त्रीलिंग) 

फलानि - कई फल (नपुंसकलिंग)

ऊपर 'अश्वा:', 'बालिका:' तथा 'फलानि' शब्द कर्ताकारक, बहुवचन के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। 

वर्षा, प्राण, सिकता (बालू), असु (प्राण), दार, कति आदि शब्द बहुवचनान्त हैं। जैसे- वर्षाः भवन्ति- वर्षा होती है। प्राणाः निर्गच्छन्ति - प्राण निकलते हैं। कति छात्राः पठन्ति- -कितने छात्र पढ़ते हैं? 

उत्तम पुरुष में तथा किसी का सम्मान प्रकट करने के अर्थ में एकवचन के स्थान में भी बहुवचन का प्रयोग होता है। जैसे- अहं पठामि (मैं पढ़ता हूँ)' के स्थान में वयम् पठामः का प्रयोग हो सकता है। 

इसी तरह आदर प्रकट करने के लिए गुरुवरा: आगच्छन्ति (गुरुवर आते हैं) – ऐसा प्रयोग किया जाता है। 

टिप्पणी– संख्यावाची 'एक' शब्द एकवचन में एक, एका, एकम् द्वि शब्द सदा द्विवचन में द्वौ, द्वे, द्वे और त्रि से अष्टादशन तक बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं। ऊनविशांत से ऊपर संख्या शब्द सदा एकवचन में प्रयुक्त होते हैं।

चलते चलते 

दोस्तों आशा करता हूँ की अब आपके मन में  संस्कृत में वचन संबंधी कोई समस्या शेष नहीं रही होगी | वचन एक छोट टॉपिक जरूर है परन्तु इसके बिना आप संस्कृत व्याकरण की नीव मजबूत नहीं रख सकते | 

एक नजर  इधर भी ......

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