वर्ण किसे कहते हैं , वर्ण की परिभाषा क्या है या हिंदी में वर्ण किसे कहते हैं यह जानने के लिए आप हमारे ब्लॉग पर आये हैं तो आप बिलकुल सही जगह आये हैं क्योंकि इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपके मन में वर्ण किसे कहते हैं जैसा कोई सवाल शेष नहीं रह जायेगा।
दरअसल आज कल दौर हो चला है प्रतियोगी परीक्षाओं का, जिसमें हिंदी व्याकरण भी एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है , इसलिए आज ज्यादातर विद्यार्थिओं का रुझान हिंदी की और बढ़ा है।
जब भी आप हिंदी व्याकरण के पहले अध्याय की बात करते हैं तो वह वर्ण है क्योंकि यही से व्याकरण की शुरुआत होती है ,और वर्ण किसे कहते हैं जाने बिना आगे नहीं बढ़ सकते |
वर्ण के कई अर्थ है। पदार्थों के लाल, काले आदि भेदों के नाम यानी रंग के अर्थ में वर्ण प्रयुक्त होता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जाति के संबंध में भी वर्ण का प्रयोग होता है।
भेद, प्रकार, रूप, सूरत आदि अर्थों में भी वर्ण का हम प्रयोग करते रहते हैं। लेकिन, यहाँ वर्ण से हमारा आशय है अकारादि अक्षरों के चिह्न अथवा संकेत।
वर्ण अक्षर भी कहलाता है।
कभी आपने सोचा है कि वर्ण को अक्षर क्यों कहा जाता है? यह इसलिए कि वर्ण नित्य, अविनाशी, सदा एक-सा बने रहते हैं।
अक्षर ब्रह्म होते को हम रचना की दृष्टि से अंग्रेजी के एल्फाबेट या लेटर के अर्थ में समझाना चाहते हैं। बहरहाल, वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण है और यह ध्वनियों के उच्चारित और लिखित दोनों रूपों के प्रतीक है।
खैर यह सब तो थी वर्ण के भूमिका बांधने की बातें, अब मुद्दा यह है कि सच में वर्ण क्या है ?????
संरचना की दृष्टि से वर्ण भाषा की लघुतम इकाई है, वर्ल्ड उस मूल ध्वनि को कहते हैं जिसका कोई खंड संभव नहीं ।
अर्थात् भाषा की वह छोटी-से-छोटी ध्वनि जिसके खंड न हो सके, वर्ण कहलाती है। लिखित भाषा को स्थायित्व प्रदान करने में वर्णों की भूमिका सर्वाधिक है।
जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है वर्ण सांकेतिक होते हैं। किसी भी ध्वनि के लिए संकेत होता है। क्या आपने कभी इस मुद्दे पर सोचा है कि आपकी उच्चरित ध्वनि या ध्वनियों के लिए कोई विशेष संकेत क्यों होता है?
इसका उत्तर जानने के लिए आपको लिपियों का विकास जानना आवश्यक है। यहाँ बस इतना जान लें कि हिंदी वर्णों को मूलतः देवनागरी लिपि में लिखा जाता है।
देवनागरी या दूसरा नाम नागरी भी है। इसके अलावा महाजनी, कैथी, मारवाड़ी आदि लिपियों में भी हिन्दी का लेखन होता है।
लेकिन छापे की लिपि देवनागरी होने के कारण उन लिपियों का उतना अधिक महत्व नहीं रह गया है। इधर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के कारण रोमन लिपि में हिंदी वर्ण लिखे जा रहे हैं।
बताना जरूरी है कि हिंदी की प्रकृति और देवनागरी लिपि की प्रामाणिकता के सामने रोमन लिपि में हिंदी वर्ण कुछ हास्यास्पद प्रतीत होता है हिंदी में, जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है।
साथ ही जैसा लिखा हुआ होता है वैसे पढ़ा जाता है। इसे पूरा करने की सामर्थ्य देवनागरी की है। रोमन लिपि में इस वैशिष्ट्य का अभाव है।
एक उदाहरण से इसे स्पष्ट करने में सहज होगा। हिंदी में भाषा उच्चरित होता है तो उसे भाषा ही लिखा जाएगा जबकि रोमन में उसे Bhasha लिखा जाएगा।
Bhasha को भास, भासा, भसा, भष, भषा, भाष, भाषा, भष आदि कई रूपों में पढ़ा जाएगा। अतः हिंदी वर्णों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त, वैज्ञानिक और मानक लिपि देवनागरी ही है।
इस लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है जिसमें संस्कृत वर्णमाला के सभी वर्ण मिलते हैं। हिंदी के अलावा संस्कृत, मराठी, नेपाली आदि भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि का उपयोग होता है।
हिंदी वर्णमाला में कुल 46 वर्ण है, इसके अतिरिक्त तीन संयुक्त एक मित्र वर्ण दो अयोगवाह वर्ण भी है , इन वर्णों को स्वर तथा व्यंजन में बांटा गया है ।
वर्ण विचार भाषा में अनेकरूपता आ जाए तो विभिन्न प्रकार के भ्रम उत्पन्न होते हैं। ऐसी स्थिति में भ्रमों का निराकरण आवश्यक हो जाता है।
भाषा का मानक रूप निश्चित करना पड़ता है। भाषा के शुद्ध रूपों और प्रयोगों के निरूपण की आवश्यकता होती है।
इसके लिए व्याकरण शास्त्र हमारी सहायता करता है। व्याकरण से ही भाषा के नियमों का परिचय मिलता है।
भाषा का एक स्थिर रूप बनाने में व्याकरण का महत्व अस्वीकारा नहीं जा सकता है। भाषा के शुद्ध बोलने लिखने, पढ़ने और समझने के नियमों का ज्ञान जिस शास्त्र से होता है उसे व्याकरण कहते हैं।
इसलिए प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण होता है। भाषा को व्यवस्थित तथा मानक रूप प्रदान करने वाला शास्त्र व्याकरण है।
हम यहा व्याकरण के संदर्भ में इसलिए बता रहे हैं कि वर्ण किसे कहते हैं जो की वर्ण विचार का अंग है और वर्ण विचार व्याकरण का एक अंग है।
व्याकरण में भाषा के विभिन्न घटकों का अध्ययन किया जाता है। इन्हें निम्नलिखित शीर्षकों से जाना जा सकता है।
क) वर्ण विचार (Orthography)
ख) शब्द विचार (Etymology)
ग) पद विचार
घ) वाक्य विचार (Syntax)
उपर्युक्त चार विभागों के अतिरिक्त दो और विभाग भी हिंदी व्याकरण में स्वीकृत हैं, चिह्न विचार और छंद विचार आइए अब हम वर्ण विचार (orthography) के क्षेत्र के बारे में चर्चा करें (जिससे हमें वर्ण किसे कहते हैं से सम्बंधित और जानकारियां मिल सके):
वर्ण विचार क्या है ?
जिस विभाग में वर्ण अथवा अक्षरों के आकार, उच्चारण और उनके मेल से शब्द निर्माण की चर्चा होती है उसे वर्ण विचार कहा जाता है।
वर्णों अथवा अक्षरों का स्वतः उच्चारण होता है। स्वर अपनी प्रकृति से अक्षर होते ही हैं लेकिन व्यंजन वर्णों में भी रहते हैं। जैसे 'अ' वर्णक के साथ मिलकर 'क' बनता है।
ध्यान से देखा जाए तो वर्ण विचार शुद्ध भाषा प्रयोग के लिए परम आवश्यक ही नहीं सर्वप्रथम विभाग भी है। वर्णों को पहचानने के लिए जो कल्पित चिह्न या संकेत निर्धारित होते हैं, उनके आकार एवं उच्चारण आदि के बारे में जानकारी हासिल करना जरूरी है।
इस संदर्भ में एक सवाल उठता है कि ऐसी जानकारी से भाषाई शुद्धता का क्या संबंध है? लता एक शब्द है।
वर्ण विचार करें तो यह केवल दो वर्णों से बना शब्द नहीं बल्कि लू. अं. तू आ चार वर्णों के मेल से बना शब्द है।
अतः बिना वर्ण विचार की समझ से व्याकरण तथा भाषा की सही जानकारी नहीं हो सकती है। वर्ण विचार के अतिरिक्त शब्द विचार, पद-विचार और वाक्य विचार भी भाषा तथा व्याकरण के अन्य घटक है।
शब्दों की व्युत्पत्ति, रचना तथा भेद आदि के नियमों का उल्लेख शब्द विचार के अंतर्गत होता है तो पद-भेद, रूपांतर एवं प्रयोग संबंधी नियम, पद विचार एवं वाक्य भेद, वाक्य के अंग-उपांग आदि पर विचार वाक्य विचार के अंतर्गत किया जाता है।
इसी तरह पूर्ण विराम, अल्प विराम, कोलोन, सेमीकोलोन, डैश, अद्ध विराम, कोष्ठक आदि चिह्नों का प्रयोग चिह्न विचार के अंतर्गत है। छंद विचार में छंद के नियम आदि मालूम होते हैं। लेकिन, इसका संबंध केवल पद्य से है।
इन विषयों में यदि आपकी रुचि हो और अधिक जानकारी प्राप्तः करनी हो तो आप कोई भी भाषा विज्ञान की स्तरीय पुस्तक पढ़ सकते हैं।
वर्णमाला किसे कहते हैं ?
वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। प्रत्येक भाषा में सारे वर्णों के क्रमबद्ध समूह होते हैं।
हिंदी में भी वर्णों अथवा अक्षरों के समूह क्रमबद्ध रूप में पाये जाते हैं। हिंदी वर्णमाला का मानक रूप निम्नलिखित है :
स्वर = अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
अनुस्वार = अं (ां )
विसर्ग = अः ( ाः )
व्यंजन = क ख ग ङ , च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न , प फ ब भ म
अंतस्थ = य र ल व
ऊष्म = श ष स ह
संयुक्त व्यंजन = क्ष त्र ज्ञ श्र
आगत वर्ण = ऑ ज फ
विशेष व्यंजन = ड़ ढ़
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वर्ण की परिभाषा
शब्द का वह खण्ड जिसका फिर टुकड़ा न हो सके, वर्ण कहलाता है। अर्थात जिस सार्थक ध्वनि का कोई खंड न हो सके उसे वर्ण कहते हैं वहीं टुकड़ा हो सकने की स्थिति में इन्हें अक्षर कहते हैं।
जैसे-क= क् + अ । वस्तुतः व्यवहार में वर्ण और अक्षर में कोई अन्तर नहीं किया जाता।
वर्ण कितने प्रकार के होते हैं ? ?
वर्ण दो प्रकार के होते हैं :
1. स्वर वर्ण, और
2. व्यज्जन वर्ण
संस्कृत में कारक के बारे में विस्तार पूर्वक जानने के लिए ( क्लिक करें ....)
स्वर वर्ण किसे कहते हैं
जिस वर्ण का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से होता है, उसे स्वर वर्ण कहते हैं। दूसरे शब्दों में जिस सार्थक ध्वनि के उच्चारण में अन्य किसी वर्ण की सहायत न ली जाए उसे स्वर वर्ण कहते हैं |
तथा स्वर के उच्चारण में अंदर से आनेवाली ध्वनि में किसी तरह की रुकावट नहीं होती |
आपको स्मरण होगा कि स्वर उन्हें कहते हैं जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं कुछ और जिनका उच्चारण आप से हो सकता है।
इसके पहले उल्लेख किया जा चुका है कि अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ 11 वर्ण स्वर के अंतर्गत आते हैं।
देवनागरी में और वर्ण हैं जो हिंदी शब्दों में नहीं आते हैं। जैसे ऋ, ऌ, ल ।
संस्कृत और एक-आघ भारतीय भाषाओं में इन वर्णों का प्रयोग कभी-कभार मिल जाता है। हिंदी में प्रयुक्त 11 स्वर वर्णों में ए, ऐ, ओ, औ पर ध्यान दें तो स्पष्ट हो जाएगा कि अ +इ=ए, आ + ई = ऐ, अ + उ = ओ एवं अ + ऊ = औ स्वर बनते हैं।
हिन्दी भाषा में ए, ऐ, ओ और औ स्वरों के दो-दो उच्चारण होते हैं, जिनमें एक साधारण और दूसरा असाधारण है। एक, ऐक्य, मोटा और कौआ शब्दों में ए, ऐ, ओ और औ का साधारण उच्चारण होता है।
परंतु एक्का, ऐसा, मोहल्ला और चौसर शब्दों में उनका उच्चारण असाधारण है। ए और ओ का जहाँ असाधारण उच्चारण होता है, वहाँ इनके बदले इ और उ भी लिखते हैं ऐ और औ स्वरों के साधारण 'अइ' और 'अउ' तथा असाधारण उच्चारण ‘अय' और 'अव होते हैं।
ए और ओं को अंगरेजी में dipthong और ए और औ को tripthong कहते हैं। यह इसलिए कि पहले दो अक्षरों में दो स्वरों का और पिछले दोनों में तीन स्वरों का एक साथ उच्चारण होता है.
स्वर वर्णों की संख्या 13 है : अ , आ , इ ,ई ,उ ,ऊ ,ऋ, ऋ, लृ , ए , ऐ , ओ , औ |
1.1. स्वर वर्ण के कितने भेद हैं ???
१. ह्रस्व,
२. दीर्घ और
३. प्लुत
ह्रस्व स्वर- ह्रस्व स्वर के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है। ये पाँच हैं - अ, इ, उ, ऋ और लृ । ह्रस्व को मूल ध्वनि या मूल स्वर भी कहते हैं।
दीर्घ स्वर - दीर्घ स्वर के उच्चारण में ह्रस्व से दुगुना समय लगता है, यानी ह्रस्व के उच्चारण से कुछ अधिक जोर लगाना पड़ता है। दीर्घ स्वर आठ हैं— आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ और औ।
प्लुत स्वर- प्लुत स्वर के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक जोर लगाना पड़ता है। इसका प्रयोग सम्बोधन वगैरह में होता है। जैसे- हे कृष्ण
व्यंजन वर्ण किसे कहते हैं
जिन वर्णों को हम बिना स्वर की सहायता से नहीं बोल सकते हैं उन्हें व्यञ्जन वर्ण कहते हैं। 'क' में दो वर्ण हैं-'क्' और 'अ' । 'क्' व्यंजन है और 'अ' स्वर ।
क् से लेकर ह् तक ३३ व्यञ्जन वर्ण हैं। क्ष, त्र, ज्ञ, संयुक्त व्यञ्जन वर्ण हैं । संस्कृत में परिभाषा की बात करें तो : 'व्यञ्जयन्ति अर्थात् प्रकटी कुर्वन्तीति व्यञ्जनानि ।
अर्थात जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं हो सकता है वे व्यंजन वर्ण कहलाते हैं। उच्चारण की सुविधा के लिए व्यंजनों में 'अ' लगा मान लिया जाता है।
जब अकार नहीं लगा रहता है तब व्यंजनों के नीचे तिरछी रेखा लगा देते हैं जिसे हलन्त' कहते हैं। जैसे क. म.ल. वु आदि ।
आपने वर्णमाला उपशीर्षक के अंतर्गत व्यंजन वर्णों का परिचय प्राप्त किया है। इन वर्णा में 5 वर्ण क च ट त प के नाम से जाने जाते हैं।
प्रत्येक वर्ग के अंतर्गत पाँच-पाँच वर्ण होते हैं। आइए. फिर से व्यंजन वर्णों को उनके वर्गानुसार निचे लिखे हुए तालिका में देखें:
व्यंजन वर्ण के भी कुछ भेद हैं जो निम्नलिखित हैं :
स्पर्श व्यंजन वर्ण
अंतःस्थ व्यंजन वर्ण
यह आधे स्वर तथा आधे व्यंजन है इनके उच्चारण में जिह्वाग्र विशेष सक्रिय नहीं रहती, जैसा कि अन्य वर्णों में होता है ।
आधुनिक काल में र तथा ल को पूर्ण व्यंजन माना जा रहा है जबकि य और व ही अंतस्थ व्यंजन के रूप में प्रयुक्त होने हैं ।
उष्म व्यंजन वर्ण
इनके अतिरिक्त हिंदी वर्णमाला में तीन संयुक्त व्यंजन क्ष , त्र , ज्ञ भी सम्मिलित है । क्ष एक मित्र वर्ण है, यह संयुक्त व्यंजन दो वर्णों के सहयोग से बने हैं -
क् + ष = क्ष
त् + र = त्र
ज् + यन = ज्ञ
श् + र = श्र
ड़ तथा ढ़ दो ऐसे व्यंजन है जो द्विगुण व्यंजन कहलाते हैं, शब्दों के अंत या मध्य में इनका प्रयोग होता है जबकि प्रारंभ में यह कभी नहीं आते हैं ।
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वर्ण वर्ग तालिका
- कवर्ग : क ख ग घ ङ
- चवर्ग- च छ ज झ ञ
- टवर्ग- ट ठ ड ढ ण
- तवर्ग - त थ द ध न
- पवर्ग- प फ ब भ म
- अन्तःस्थ - य र ल व
- ऊष्म - श ष स ह
अनुस्वार और विसर्ग
वर्णों के अंतर्गत अनुस्वार () और विसर्ग ( : ) की गणना नहीं होने पर भी ये वर्णों की तरह कार्य करते हैं। अनुस्वार का उच्चारण नाक से तथा विसर्ग का उच्चारण आधा 'ह' के समान होता है।
वर्णों का उच्चारण स्थान
1. स्पर्श - क, ख, ग, घ, ट , ठ , ड , ढ , त , ठ, द , ध , प, फ, ब, भ
2. स्पर्श संघर्षी - च , छ, ज , झ
3. संघर्षी - फ, श , ह, ज, ष
4. अनुनासिक - ड़ , यन, ण , न , म
5. पार्श्विक - ल
6. प्रकंपित - र
7. उत्क्षिप्त - ड़, ढ़
8. अर्धस्वर - य, व
बाह्य प्रयत्न के आधार पर संपूर्ण व्यंजनों को दो भागों में विभाजित किया जाता है -1. अल्पप्राण 2. महाप्राण
प्रत्येक वर्ण समूह का पहला, तीसरा तथा पंचवा वर्ण अल्प्राण कहलाता है, महाप्राण वर्णों के उच्चारण में श्वास की मात्रा अत्यधिक होती है ।
प्रत्येक वर्ग का दूसरा चौथा तथा सभी ऊष्म वर्ण महाप्राण कहलाते हैं ।
क, ग, ड़, च, ट , ड , ण , त, द , न , प, ब, म, य, र, ल , व, ड इत्यादि अल्पप्राण व्यंजन है । इनके उच्चारण में हवा की कम मात्रा तथा हवा कम शक्ति के साथ बाहर आती है ।
ख, घ, छ, झ, ठ, ढ़, थ , घ, फ, ह, श , ष , स, ह, महाप्राण व्यंजन है इनके उच्चारण में हवा की अधिक मात्रा तथा हवा अधिक शक्ति के साथ बाहर आती है ।
ध्वनि के उच्चारण में मंत्रियों के कंपन की प्रक्रिया होती है, इस कंपन के कारण वर्ण के उच्चारण के साथ जो तरंग वायु के साथ बाहर आती हैं उन्हें घोष कहा जाता है ।
इस आधार पर वर्णों को दो भागों में विभाजित किया गया है -
सघोष वर्ण तथा अघोष वर्ण
जब स्वर तंत्रियाँ एक दूसरे के निकट आकर वायु में कंपन पैदा करती हुई ध्वनि के उच्चारण में सहायता करती है, तो ऐसी ध्वनियों को सघोष कहते हैं ।
सभी स्वर वर्ण प्रत्येक व्यंजन वर्ण का तीसरा, चौथा, और पांचवा वर्ण तथा अंतःस्थ वर्ण तथा ह सघोष कहलाते हैं ।
अघोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर तंत्री दूर दूर रहती है तथा वायु इन तंत्री मैं बिना कंपन के निकल जाती है ।
संयुक्त व्यंजन
- क्ष = क् + ष् + अ
- त्र = त् + र् + अ
- ज्ञ = ज्ञ + अ
- श्री = श् + र् + ई
- प्र = प् + र् + अ
- शृ = श् + ॠ
- द्य = द् + य् + अ
- क्त = क् + त् + अ
- द्ध = द् + ध् + अ
वर्ण से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न :
कुछ बातें
दोस्तों दरअसल हिंदी व्याकरण और संस्कृत व्याकरण में ज्यादा भिन्नता नहीं हैं , परन्तु इनके परिभाषा में भाषात्मक लिपि की थोड़ी बहुत हेर फेर देखने को मिलती है
जिसके वजह से संस्कृत व्याकरण थोड़ा भिन्न हो जाता है , अगर तरीको की बात की जाए तो दोनों में बिलकुल सामान होता है |
यह प्रथम अध्याय होने के कारण थोड़ा संछिप्त रहा है, आगे हम व्याकरण को और अधिक विस्तारपूर्वक जानेंगे |
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