अगर हमारे मन में यह प्रश्न उठता है कि विशेषण किसे कहते हैं , तो हम जरूर सोचते हैं कि अगर इसमें विशेष लगा है तो इसका परिभाषा भी किसी चीज का विशेष बताना होगा।
कुछ हद तक हम सही भी होते हैं परंतु अगर हमें विशेषण किसे कहते हैं ना पूछ कर यह पूछ दे की विशेषण की परिभाषा क्या है ?
दरअसल संस्कृत में कहा गया है की विशेष्यते संज्ञा सर्वनामानि येनेति विशेषणम्।
अर्थात् जिस शब्द के द्वारा संज्ञा और सर्वनाम विशेषित होते हैं, उसे 'विशेषण' कहते है। अथवा सरल भाषा में कहे तो जो शब्द 'संज्ञा' या 'सर्वनाम' की विशेषता बताए, उसे 'विशेषण' कहते हैं।
जैसे- राम अच्छा है। वह बुरा है।
आपके मन में एक प्रश्न आता होगा आखिर हम विशेषण क्यों पढ़ते हैं ? तो आपके शंका के समाधान के लिए हम बता दें की विशेषण हमारी जिज्ञासाओं का समाधान करता है। जैसे-कैसा लड़का ? बुरा या अच्छा।
विशेष्य किसे कहते हैं
विशेष्य ; विशेषण से बिलकुल जुड़ा होता है, अर्थात जिस शब्द से विशेषता बतलाई जाये उसे विशेषण परन्तु जिस शब्द की विशेषता बतलाई जाये उसे विशेष्य कहते हैं ।
उदाहरण के लिए जैसे- गाय काली है में काली विशेषण है परंतु गाय विशेष्य है।
विशेषण के उपयोग
जब हम कोई भी विशेषण का जिक्र करते हैं तो हम उसके उपयोग से कुछ सीमित कार्य ही कर सकते हैं और उसी तरह विशेषण की निम्नलिखित उपयोग या कार्य हैं :
(क) विशेषता या हीनता बताना,
(ख) अर्थ सीमित करना
(ग) संख्या निर्धारित करना
(घ) परिमाण या मात्रा बताना।
लिंग किसे कहते हैं उसके भेद एवं प्रकार
विशेषण के भेद
(1) गुणवाचक विशेषण
(2) परिमाण वाचक विशेषण
(3) संख्यावाचक विशेषण
(4) सार्वनामिक विशेषण
( इन भेदों के अलावा भी विशेषण के दो भेद होते हैं जिसकी चर्चा हमने नीचे की है )
गुणवाचक विशेषण किसे कहते हैं
जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु की संज्ञा के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्थिति, स्वभाव, दशा, स्पर्श, गंध, व्यवसाय तथा दिशा आदि का बोध कराएँ, वे गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं।
अर्थात जिस शब्द से संज्ञा के गुण, दोष, स्वभाव का पता चलता हैं उसे हम गुणवाचक संज्ञा कहते हैं , सर्वाधिक विशेषण इसी कोटी मे आते हैं ।
जैसे - नया , पुराना, प्राची, पाश्चात्य, काला, नीला, भला, बुरा, उचित, अनुचित, इत्यादी ..
गुणवाचक विशेषण की गणना करना मुमकिन नहीं। जैसे:-
गुण = अच्छा, भला, शिष्ट
दोष = बुरा, खराब, अशिष्ट
रंग = नीला, पीला, हरा
काल = पुराना, प्राचीन, नवीन, क्षणिक,
स्थान = अमरोही, चीनी, मद्रासी
गंध = खुशबूदार, सुगन्धित
दिशा = पूर्वी, पश्चिमी
अवस्था = गीला, सूखा, जला हुआ
दशा = अस्वस्थ, रोगी, भला, चंगा
आकार = मोटा, लंबा, ठिगना, चौड़ा
स्पर्श = कठोर, कोमल, मखमली
स्वाद = मीठा, खट्टा, अम्ल, कसैला..।
परिणाम वाचक विशेषण किसे कहते हैं
जिससे किसी वस्तु की तौल, साप या परिमाण जाना जाए, उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
जैसे-थोड़ा दूध, चार सेर अनाज ...
(i) निश्चित परिमाणवाचक और
(ii) अनिश्चित परिमाणवाचक।
(i) निश्चित परिमाणवाचक :-
निश्चित मात्रा का बोधक निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाता है। जैसे- दो सौ ग्राम चीनी ।
(ii) अनिश्चित परिमाणवाचक :-
संख्यावाचक विशेषण किसे कहते हैं
प्रयोग के अनुसार संख्यावाचक विशेषण पाँच प्रकार के होते हैं
(i) गणनावाचक :- ऐसा संख्यावाचक विशेषण जिससे गणना की जाए संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
गणनावाचक विशेषण भी दो प्रकार के हैं :-
(क) पूर्णाकबोधक :- एक, दो, तीन आदि। (ख) अपूर्णांकबोधक :- पौने, ढाई आदि
(ii) क्रमवाचक :- पहला, दूसरा, तीसरा आदि।
(iii) आवृत्तिवाचक :-दूना, तिगुना, चौगुना आदि।
(iv) समुदायवाचक :- दोनों, तीनों, चारों आदि।
(v) प्रत्येकबोधक :- प्रत्येक, हर एक, दो-दो आदि।
सार्वनामिक विशेषण किसे कहते हैं
जो सर्वनाम किसी संज्ञा के पहले आकर उसकी विशेषता बताये, वह सार्वनामिक विशेषण कहलाता है। जैसे - यह गाय चरती थी।
अर्थात पुरूषवाचक तथा निजवाचक सर्वं जैसे मैं तुम के अतिरिक्त अन्य सर्वनाम यदि किसी संज्ञा के पहले आते है तब वउसे हम सर्वनामिक विशेषण कहते हैं ।
जैसे- वह मजदूर नहीं लौटा, यह आदमी भरोसेमंद है ।
यहाँ मजदूर तथा आदमी संज्ञा के पहले सर्वनाम 'वह' और 'यह' उस संज्ञा की विशेषता बतलाता निर्धारित करते हैं अतः ये सर्वनामिक विशेषण हैं ।
'सार्वनामिक विशेषण' के भी दो भेद हैं
(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण - सर्वनाम का मूल रूप जो किसी संज्ञा की विशेषताएँ बताये। जैसे यह आदमी।
((ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण - सर्वनाम का रूपान्तरित रूप जो संज्ञा की विशेषताएँ बताये, वह यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहलाता है। जैसे- ऐसी गाय ।
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विशेषण के अन्य भेद
इसके अतिरिक्त भी विशेषण के दो प्रकार हैं
(1) तुलनाबोधक विशेषण और (2) संबंध वाचक ।
(1) तुलनाबोधक विशेषण :-
दो या दो से अधिक पदार्थों या भावों के गुण, रूप, स्वभाव, स्थिति आदि की परस्पर तुलना जिन विशेषताओं के द्वारा की जाए, उन्हें तुलनाबोधक विशेषण कहते हैं।
जैसे : हिन्दी में : - से, की अपेक्षा, सामने, वनिस्पत, सबमें, सबसे लगाकर विशेषणों की तुलना की जाती है। जैसे -राम मोहन से अच्छा है।
संस्कृत के 'तरप्' (तर) और 'तमप्' (तम) प्रत्यय का प्रयोग कर मूलावस्था के अतिरिक्त शेष दोनों अवस्थाओं में होता है। स्पष्ट है कि तुलनाबोधक विशेषण की तीन अवस्थाएँ होती हैं :-
मूलावस्था = श्रेष्ठ, लघु, महत्, कोमल
उत्तरावस्था = श्रेष्ठतर, लघुतर, महत्तर, कोमलतर
उत्तमावस्था = श्रेष्ठतम, लघुतम, महत्तम, कोमलतम
( 2 ) सम्बन्धवाचक विशेषण :-
जो विशेषण किसी वस्तु की विशेषताएँ दूसरी वस्तु के सम्बन्ध में बताता है, उसे सम्बन्धवाचक विशेषण कहते हैं। इस तरह के विशेषण संज्ञा, क्रिया-विशेषण तथा क्रिया से बनते हैं। जैसे :
आनन्द = आनन्दमय (संज्ञा से)
बाहर = बाहरी (क्रियाविशेषण से)
खुलना = खुला (क्रिया से)
प्रविशेषण किसे कहते हैं
जो शब्द विशेषण की विशेषता बतलाये उसे 'प्रविशेषण' या 'अन्तर विशेषण' कहते हैं।
जैसे- राम बहुत अच्छा है।
वाक्य में प्रयोग की दृष्टि से विशेषण के प्रकार
जैसा कि हमने ऊपर पड़ा कि विशेषण मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं, उसके अतिरिक्त हमने विशेषण के अन्य दो अन्य भेदों को भी देखा।
हम उन सभी को मिला दें तो विशेषण के 6 भेद पूरे हो जाएंगे, परंतु कहीं-कहीं आपने 8 भेद भी लिखा देखा होगा, तो हम आपको बता दें की वाक्य में प्रयोग की दृष्टि से विशेषण दो प्रकार के होते हैं
(1) विशेष्य या सामान्य विशेषण :- जो विशेषण विशेष्य के पहले आये वह विशेष्य विशेषण कहलाता है। जैसे-काली गाय चर रही है।
(2) विधेय विशेषण :- जो विशेषण विशेष्य के बाद आये, वह विधेय विशेषण कहलाता हैं। जैसे-मेरी गाय काली है।
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विशेषण की रचना
ये अपने मूल रूप से हमेशा रहते हैं , जैसे - लाल, सुंदर, गोल, भारी इत्यादि ।।
कुछ विशेषण संज्ञाओं मे प्रत्याय लगाकर बनाते हैं , जैसे - बाल + वाल = बलवान । आत्मा + ईय = आत्मीय , दान + ई = दानी
तुलनात्मक विशेषण हिन्दी में मूल शब्द में 'तर' और 'तं' लगाकर बनाए जाते हैं । जैसे - लघु से लघूत्तम , लघुतर । उच्च से उच्चतर और उच्चतम ।
विधेय विशेषण उस विसेशन को कहते हैं, जो संज्ञा विशेष्य ) के बाद आता है ।
प्रविशेषण किसे कहते हैं
राठोर बहुत अच्छा निशानेबाज है ।
यहाँ अच्छा विशेषण की विशेषता बतलाने वाला शब्द 'बहुत' प्रविशेषण है । इसे आमतौर पर अन्यत्रविशेषण भी कहा जाता है ।
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