अगर हमारे मन में यह सवाल आता है कि क्रिया किसे कहते हैं, इसका परिभाषा क्या हो सकता है ? हम आपको बता दें कि आज के इस आर्टिकल में हम क्रिया किसे कहते हैं , क्रिया की परिभाषा उसके भेद तथा उदाहरण को जानेंगे। विशेषण किसे कहते हैं ?
संस्कृत में कहा जाता है कि करणम् क्रिया । अर्थात् कुछ करना या किया जाना को ही 'क्रिया' कहते है। अथवा साधारण शब्दों में कहें तो "क्रिया' वह शब्द या शब्द-समूह है जिससे किसी कार्य, घटना या अस्तित्व का बोध होता है। जैसे-दौड़ना, खाना आदि।
क्रिया वाक्य का केन्द्रबिन्दु होती है और कर्ता, कर्म की पहचान का आधार बनती है। या तो प्रत्येक वाक्य में क्रिया अवश्य होती है, परन्तु कभी-कभी वह प्रच्छन्न (लुप्त) भी रहती है। वचन किसे कहते हैं
धातु किसे कहते हैं
जब हम क्रिया की बात करते हैं, तो वास्तविक रूप में हम धातु की ही बात कर रहे होते हैं। परंतु अज्ञानतावश हमें पता नहीं होता है कि क्रिया और धातु में फर्क क्या होता है ?
दरअसल क्रिया के मूल रूप को ही 'धातु' की संज्ञा दी गई है। यानी किसी क्रिया के विभिन्न रूपों में जो अंश समान रूप से मिलता है, उस क्रिया को 'धातु' कहते हैं। लिंग किसे कहते हैं
जैसे- पढ़ना, पढ़ता, पढ़ती, पढ़ा, पढ़ो, पढ़िए आदि में 'पढ़' समान रूप से आया है, अत: 'पठ्' धातु है। सामान्यतः क्रिया से मूलत: 'ना' हटा देने पर धातु बचती है।
जैसे पढ़ना ना पढ़ मूल धातु का प्रयोग तू सर्वनाम के साथ आज्ञार्थक क्रिया के रूप में अधिकाधिक होता है। तू जैसे तू खा तू मत जा, इत्यादि ......
प्रत्येक धातु के साथ 'ना' जोड़ने पर क्रिया का 'मूल' या सामान्य रूप बनाया जाता है। जैसे लिखना
क्रिया के प्रकार
व्युत्पत्ति अथवा शब्द निर्माण की दृष्टि से क्रिया (धातु) दो प्रकार की है -
(1) मूल क्रिया और
(2) यौगिक क्रिया।
मूल क्रिया किसे कहते हैं
'मौलिक' या 'मूल' अथवा 'रूद्र' क्रिया वह है, जो मुख्यत: और मूलतः उसी रूप में भाषा में गृहीत है। यह किसी दूसरे शब्द पर आश्रित नहीं रहती। जैसे - खा, पी, ला , जा इत्यादि ।
यौगिक क्रिया किसे कहते हैं
'जो क्रिया (धातु) मूल प्रकृति में किसी प्रत्यय के बढ़ाने, घटाने, जोड्ने से तैयार होती है, उसे ही 'यौगिक' क्रिया कहते हैं। जैसे जाना गया जाये, जाता, जायेगा आदि।
यौगिक क्रिया (3 ) तीन प्रकार से बनती है।
(1) धातु में प्रत्यय लगाने से अकर्मक से सकर्मक और प्रेरणार्थक धातुएँ
(2) कईको संयुक्त करने से ।
(3) संज्ञा या विशेषण से नाम धातु ।
क्रिया के कार्य
क्रिया के निम्नलिखित कार्य है :-
(क) वस्तु की गतिशीलता का बोध कराना। जैसे- राम दौड़ता है। वायु चलती है।
(ख) किसी कार्य के होने या किये जाने का बोध कराना। जैसे- राम चिट्ठी लिख रहा है।
(ग) अस्तित्व का बोध कराना। जैसे- बन्दर पेड़ पर बैठा है।
(घ) स्थिति का बोध कराना । जैसे- गाय बैठी है।
(ङ) मनःस्थिति का बोध कराना। जैसे- गोपाल रोता है।
★वाक्य में कर्म की अपेक्षा रखने या न रखने अथवा रचना की दृष्टि अथवा अर्थ के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं
अकर्मक क्रिया किसे कहते हैं ?
जिस क्रिया का फल या व्यापार, दोनों कर्ता के ही अधीन हो। अर्थात् अकर्मक क्रिया वह क्रिया है, जो वाक्य में कर्म की अपेक्षा नहीं रखती है। जैसे- हँसना, रोना आदि।
साधारणत: 'क्या' और किसे इन दोनों प्रश्नों में से किसी के भी उत्तर न मिले तो समझना चाहिए वह क्रिया 'अकर्मक' है।
सकर्मक क्रिया किसे कहते हैं ?
सकर्मक क्रिया वह क्रिया है, जो वाक्य में कर्म की अपेक्षा रखे यानी जिस क्रिया का फल या व्यापार कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े। जैसे- राम खाता है।
यदि 'क्या' और 'किसे' का जवाब मिल जाए, तो समझना चाहिए कि वह 'सकर्मक' है।
कुछ क्रियाएँ प्रयोगानुसार अकर्मक और सकर्मक दोनों होती हैं। जैसे- अंशु गीत गाती है। (सकर्मक), अंशु गाती है। (अकर्मक)
सकर्मक क्रिया को अकर्मक क्रिया में कैसे बदले
(ख) दो अक्षर वाले अकर्मक धातुओं में कहीं प्रथम अथवा कहीं द्वितीय अक्षर के स्व को दीर्घ करके 'ना' जोड़ने पर। जैसे- टलना-टालना, लुटना-लूटना आदि। द्वितीय अक्षर को दीर्घ करने पर उड़ना-उडाना आदि।
(ग) दो अक्षर वाले अकर्मक धातुओं के दीर्घ स्वर को हस्व करके 'आना' जोड़कर जैसे- जागना- जगाना । भींगना - भिंगाना आदि। चिढ़ना, टहलना आदि अकर्मक क्रियाओं के धातुओं के स्वर में बिना किसी परिवर्तन के 'आता जोड़कर सकर्मक क्रियाएँ बनाई जाती हैं। जैसे :- चिड़चिदानन आदि
(घ) दो अक्षर वाले कर्मक धातुओं में 'उकार' को 'ओकार' तथा 'इकार" को "एकार'' करके 'ना' लगाने से भी सकर्मक क्रियाएँ बन जाती हैं। जैसे- खुलना खोलना, घिरनाघेरना आदि।
(ङ) तीन अक्षर वाले अर्कमक धातुओं के दूसरे अक्षर के ह्रस्व को दोघं कर 'ना' जोड़कर।
जैसे उतरना उतारता बिगड़ना बिगाड़ना आदि। कुछ अकर्मक के रूप में ही परिवर्तन कर अन्त में 'ना' या 'वाना' लगाकर। जैसे टूटना तोड़ना टला छोड़वाना आदि।
सामान्यतया रूप देने से कोई भी अकर्मक क्रिया सकर्मक का रूप धारण कर सेती है।
कारक और विभक्ति | संस्कृत में कारक
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक धातुओं के भी दो भेद हैं :-
(1) एककर्मक- जिसमें एक ही कर्म हो। जैसे- वह किताब पढ़ती है।
(2) द्विकर्मक- जिसमें दो कमों की उपस्थिति हो, जिनमें प्रथम कर्म प्राणिवाचक कि गौण कर्म और द्वितीय प्रायः अप्राणिवाचक, जो कि मुख्य कर्म होता है। जैसे माँ बच्चे को दूध पिलाती है।
Note :- द्विकर्मक क्रिया में साधारणतः प्रधान कर्म विभक्ति-रहित तथा गौण कर्म 'को' चिह्न युक्त रहता है।
कृदंत किसे कहते हैं
धातु या क्रिया में जिस प्रत्यय को जोड़कर क्रिया, विशेषण, संज्ञा या अव्यय का रूप बनता है, उसे ‘कृत्' प्रत्यय और इनसे बने शब्द को 'कृदन्त' कहते हैं। जैसे- रानी घर जाती है (क्रिया) । चलती कार से उतर जाओ। (विशेषण) काम करना नौकरों का धर्म है। (संज्ञा) । गीता यहाँ तक आकर लौट गई। (अव्यय) ।
यौगिक क्रिया के भेद
(1) प्रेरणार्थक क्रिया - जिस क्रिया का कर्ता क्रिया करने में स्वयं प्रवृत्त न होकर किसी अन्य को करने की प्रेरणा दे। जैसे वह पढ़ाता पढ़वाता है। सामान्यतः प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए 'आना' और 'बाना' प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है।
(2) नाम धातु :- संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण से बनने वाली क्रिया को 'नाम धातु' कहते हैं।
(३) संयुक्त क्रिया- जब दो या अधिक क्रियाएँ मिलकर किसी पूर्ण क्रिया को बनाती हैं, तब वै संयुक्त क्रियाएँ कहलाती हैं। यदि क्रिया एक से अधिक धातुओं से बनी हो तो उसे 'क्रिया पद' कहते हैं। जैसे- राम खा चुका है।
(4) सहायक क्रिया :- मूल क्रिया के अतिरिक्त वाक्य में अन्य जितनी भी कियाएँ होती है, सहायक क्रियाएँ कहलाती हैं। अर्थात् मुख्य क्रिया को स्पष्ट करने के लिए जो क्रिया सहाया करे,उसे सहायक क्रिया कहते है। जैसे- वह रोता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
हिन्दी में निम्नलिखित धातुओं का प्रयोग सहायक क्रिया के रूप में होता है। हो स आ, उठ, कर, चाह, चुक, जा, डाल, दे, पड़, लग, ले, पा, सक, बन, बैठ तथा चल आदि।
इस से 'सक' केवल सहायक क्रिया के रूप में ही आता है। अन्य धातुएं मुख्य क्रिया-रूप में आती हैं(ध्यान रहे - 'हो' धातु से ही है, हैं, हो, हूँ, था, थे, थी, होगा, होगी, होंगे, हुँगा, में तथा, होऊ आदि रूप बनते हैं।
अर्थ में विशेषता लाने वाली सहायक क्रियाओं को 'रंजकक्रिया' कहते हैं। जैसे :- अचानक मुर्दा जी उठा ।
जब कर्ता एक क्रिया सम्पन्न कर दूसरी क्रिया तत्क्षण शुरू करे तब पहली किय पूर्वकालिक या समापित क्रिया कहलाती है। जैसे- वह पढ़कर खाता है।
पूर्वकालिक क्रिया बनाने के लिए सामान्यतः मूल धातु में 'कर' या 'करके' लगाये जाते है
जब क्रिया संज्ञा की तरह व्यवहार में आये, तब वह "क्रियार्थक संज्ञा' कहलाती हैं।जैसे - नहाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
जहाँ एक क्रिया की समाप्ति के अनन्तर (बाद में) ही दूसरी पूर्ण क्रिया का होना पाया जाए, वह पहली क्रिया 'तात्कालिक क्रिया' कहलाती है।
यह धातु के अन्त में 'ते ही' प्रत्यय लगाकर बनाई जाती है। जैसे- नौकर फाँसी लगाते ही मर गया।
(तात्कालिक क्रिया भी पूर्वकालिक क्रिया का ही एक भेद है।)
प्रकार किसे कहते हैं
क्रियाओं के जिन रूपों से उनके प्रयोग की रीतियों का ज्ञान हो, उनको 'प्रकार' कहते हैं।
'प्रकार के तीन भेद हैं :-
(1) साधारण या निश्चयार्थक :- क्रिया के जिस रूप से साधारण क्रिया के होने का निर्देश पाया जाता है। जैसे- महेश खाता है।
(2) सम्भाव्य :-- क्रिया का वह रूप, जिससे सम्भावना पायी जाय। जैसे- काले-काले बादल घिर रहे हैं, संभव है वर्षा हो ।
संदिग्ध भूत, संदिग्ध वर्तमान तथा संभाव्य भविष्यत् की क्रियाएँ इसी प्रकार के अन्तर्गत हैं। वर्ण किसे कहते हैं |
(3) प्रवर्त्तनार्थक या विध्यर्थक :- जिससे किसी को किसी काम में प्रवृत्त करना या लगाना पाया जाय। आज्ञा, आग्रह, प्रार्थना, सलाह, उपदेश तथा प्रश्न आदि इसी के अन्तर्गत आते हैं। जैसे- दूध
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